बीमार तिरे जी से गुज़र जाएँ तो अच्छा
जीते हैं न मरते हैं ये मर जाएँ तो अच्छा
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मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'
न इंतिहा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
ज़माना बर-सर-ए-आज़ार था मगर 'फ़ानी'
क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा
कफ़न ऐ गर्द-ए-लहद देख न मैला हो जाए
जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया
इक फ़साना सुन गए इक कह गए
हर साँस के साथ जा रहा हूँ
ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई