या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'
लेकिन तिरी रहमत की ताख़ीर को क्या कहिए
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दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख
फ़ानी दवा-ए-दर्द-ए-जिगर ज़हर तो नहीं
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
रह जाए या बला से ये जान रह न जाए
ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई
हिज्र में मुस्कुराए जा दिल में उसे तलाश कर
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
जीने की है उम्मीद न मरने का यक़ीं है
डरो न तुम कि न सुन ले कहीं ख़ुदा मेरी