यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया
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हर तबस्सुम का दिया एक तबस्सुम से जवाब
इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर
ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ
आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
इक फ़साना सुन गए इक कह गए
वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला
तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था
वो हूर को चाहा कि परी को चाहा
मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
यूँ न किसी तरह कटी जब मिरी ज़िंदगी की रात
न इंतिहा की ख़बर है न इंतिहा मालूम