कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री
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लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर
ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया
दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख
दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैं
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो