क्या बला थी अदा-ए-पुर्सिश-ए-यार
मुझ से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
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दिल-ए-आबाद का 'फ़ानी' कोई मफ़्हूम नहीं
वो नज़र कामयाब हो के रही
कफ़न ऐ गर्द-ए-लहद देख न मैला हो जाए
ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था
अब उन्हें अपनी अदाओं से हिजाब आता है
कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था
भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए