वो नज़र कामयाब हो के रही
दिल की बस्ती ख़राब हो के रही
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सुने जाते न थे तुम से मिरे दिन रात के शिकवे
क्या बला थी अदा-ए-पुर्सिश-ए-यार
वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा
अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है
आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता
हो काश वफ़ा वादा-ए-फ़र्दा-ए-क़यामत
मेरी हवस को ऐश-ए-दो-आलम भी था क़ुबूल
क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते