मेरी हवस को ऐश-ए-दो-आलम भी था क़ुबूल
तेरा करम कि तू ने दिया दिल दुखा हुआ
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ये किस क़यामत की बेकसी है ज़मीं ही अपना न यार मेरा
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मा'लूम
दिल-ए-आबाद का 'फ़ानी' कोई मफ़्हूम नहीं
जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइ'ज़
जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था
जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं
जब दिल में तिरे ग़म ने हसरत की बना डाली
जौर को जौर भी अब क्या कहिए
ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है
कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
या कहते थे कुछ कहते जब उस ने कहा कहिए