आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
बच गई आँख दिल पे आई चोट
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वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम
या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'
बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते
हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना
मौत आने तक न आए अब जो आए हो तो हाए
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
आह से या आह की तासीर से
क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा
ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है
जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या