मौत आने तक न आए अब जो आए हो तो हाए
ज़िंदगी मुश्किल ही थी मरना भी मुश्किल हो गया
Anwar Masood
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Mir Taqi Mir
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क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की
याँ होश से बे-ज़ार हुआ भी नहीं जाता
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा
सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है
बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा
कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख
ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा
रोने के भी आदाब हुआ करते हैं 'फ़ानी'