मौत का इंतिज़ार बाक़ी है
आप का इंतिज़ार था न रहा
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न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'
जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था
आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत
क्या बला थी अदा-ए-पुर्सिश-ए-यार
मुस्कुराए वो हाल-ए-दिल सुन कर
आप से शरह-ए-आरज़ू तो करें
जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं
अदा से आड़ में ख़ंजर के मुँह छुपाए हुए
क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है
मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'