मुस्कुराए वो हाल-ए-दिल सुन कर
और गोया जवाब था ही नहीं
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ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता
अदा से आड़ में ख़ंजर के मुँह छुपाए हुए
क्या कहिए कि बेदाद है तेरी बेदाद
जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'
दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे
आह से या आह की तासीर से
रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है
हर तबस्सुम का दिया एक तबस्सुम से जवाब
क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते
आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत
शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं