जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
क्या तुम ने मोहब्बत की हर रस्म उठा डाली
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जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
फ़ानी दवा-ए-दर्द-ए-जिगर ज़हर तो नहीं
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
की वफ़ा यार से एक एक जफ़ा के बदले
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'