न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
रहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम
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दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं
वाहिमे की ये मश्क़-ए-पैहम क्या
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
हज़ार ढूँडिए उस का निशाँ नहीं मिलता
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम
ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था
सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है
तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा
भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मा'लूम