तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम
आया भी और गया भी ज़माना बहार का
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इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे
अब उन्हें अपनी अदाओं से हिजाब आता है
इक फ़साना सुन गए इक कह गए
मुझे बुला के यहाँ आप छुप गया कोई
बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया