वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
वो दिल में आ के अदा तेरे मुस्कुराने की
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कफ़न ऐ गर्द-ए-लहद देख न मैला हो जाए
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया
जिस्म-ए-आज़ादी में फूंकी तू ने मजबूरी की रूह
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
अदा से आड़ में ख़ंजर के मुँह छुपाए हुए
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
डरो न तुम कि न सुन ले कहीं ख़ुदा मेरी
होते हैं राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इसी से फ़ाश
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
क्या बला थी अदा-ए-पुर्सिश-ए-यार