कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख
कि ख़ुदा भी है ना-ख़ुदा ही नहीं
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(798) Peoples Rate This
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मा'लूम
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
सुने जाते न थे तुम से मिरे दिन रात के शिकवे
रोने के भी आदाब हुआ करते हैं 'फ़ानी'
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है
आह अब तक तो बे-असर न हुई
दिल और दिल में याद किसी ख़ुश-ख़िराम की
हर साँस के साथ जा रहा हूँ
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक