बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला

बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला

दम तो निकला मगर आज़ुर्दा-ए-एहसाँ निकला

आ गई है तिरे बीमार के मुँह पर रौनक़

जान क्या जिस्म से निकली कोई अरमाँ निकला

दिल-ए-आगाह से क्या क्या हमें उम्मीदें थीं

वो भी क़िस्मत से चराग़-ए-तह-ए-दामाँ निकला

दिल भी था मुँह से बस इक आह निकल जाने तक

आग सीने में लगा कर ग़म-ए-पिन्हाँ निकला

चारागर नासेह-ए-मुश्फ़िक़ दिल-ए-बे-सब्र-ओ-क़रार

जो मिला इश्क़ में ग़म-ख़्वार वो नादाँ निकला

शिकवा मंज़ूर नहीं तज़्किरा-ए-इश्क़ न छेड़

कि वो दर-पर्दा मिरा हाल-ए-परेशाँ निकला

बिजलियाँ शाख़-ए-नशेमन पे बिछी जाती है

क्या नशेमन से कोई सोख़्ता-सामाँ निकला

अब जुनूँ से भी तवक़्क़ो नहीं आज़ादी की

चाक-ए-दामाँ भी ब-अंदाज़-ए-दामाँ निकला

हाए वो वादा-ए-फ़र्दा की मदद वक़्त-ए-अख़ीर

हाए वो मतलब-ए-दुश्वार कि आसाँ निकला

शौक़-ए-बेताब का अंजाम तहय्युर पाया

दिल समझते थे जिसे दीदा-ए-हैराँ निकला

उस ने क्या सीना-ए-सद-चाक से खींचा 'फ़ानी'

दिल मैं कहता हूँ वो कहता है कि पैकाँ निकला

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