ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
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मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात
रोने के भी आदाब हुआ करते हैं 'फ़ानी'
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया
क्या कहिए कि बेदाद है तेरी बेदाद
क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर
तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
फ़ानी दवा-ए-दर्द-ए-जिगर ज़हर तो नहीं
मर के टूटा है कहीं सिलसिला-क़ैद-ए-हयात
आह से या आह की तासीर से