अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2135) Peoples Rate This
कोई आशिक़ किसी महबूबा से!
जानता है कि वो न आएँगे
हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही
हम ने सब शेर में सँवारे थे
मिरी जाँ अब भी अपना हुस्न वापस फेर दे मुझ को
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
सोचने दो
मरसिए
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
हम तो मजबूर थे इस दिल से