गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
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न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था
दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन
अपने इनआम-ए-हुस्न के बदले
मंज़र
जरस-ए-गुल की सदा
उन दिनों रस्म-ओ-रह-ए-शहर-ए-निगाराँ क्या है
फलस्तीनी बच्चे के लिए लोरी
ये किस दयार-ए-अदम में...
ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही