मांग Poetry (page 15)

छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए

इब्न-ए-सफ़ी

दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को परेशाँ होता है

इब्न-ए-इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले

हुरमतुल इकराम

ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं

हुरमतुल इकराम

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

अपने चमन पे अब्र ये कैसा बरस गया

हुरमतुल इकराम

यादें चलें ख़याल चला अश्क-ए-तर चले

होश तिर्मिज़ी

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

हम तो मंज़िल के तलबगार थे लेकिन मंज़िल

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा

हयात लखनवी

ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा

हयात लखनवी

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

हातिम अली मेहर

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की

हसरत मोहानी

हर हाल में रहा जो तिरा आसरा मुझे

हसरत मोहानी

उस ज़ुल्फ़ से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया

हसरत अज़ीमाबादी

मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी

हसरत अज़ीमाबादी

क्या कहूँ तुझ से मिरी जान मैं शब का अहवाल

हसरत अज़ीमाबादी

गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता

हसरत अज़ीमाबादी

चाहे सो हमें कर तू गुनहगार हैं तेरे

हसरत अज़ीमाबादी

तुम चुप रहे पयाम-ए-मोहब्बत यही तो है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया

हसन निज़ामी

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