हम तो मंज़िल के तलबगार थे लेकिन मंज़िल
आगे बढ़ती है गई राहगुज़र की सूरत
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Gulzar
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मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना
रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ
अब कहे जाओ फ़साने मिरी ग़र्क़ाबी के
चराग़-ए-इल्म रौशन-दिल है तेरा
आह-ए-ज़िंदाँ में जो की चर्ख़ पे आवाज़ गई
अश्क-ए-ग़म वो है जो दुनिया को दिखा भी न सकूँ
हाल बीमार का पूछो तो शिफ़ा मिलती है
साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं
वुसअ'त तिलिस्म-ख़ाना-ए-आलम की क्या कहूँ
रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है
मैं तिरा जल्वा तू मेरा दिल है मेरे हम-नशीं