हाल बीमार का पूछो तो शिफ़ा मिलती है
या'नी इक कलमा-ए-पुर्सिश भी दवा होता है
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अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या
चराग़-ए-इल्म रौशन-दिल है तेरा
दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो
मैं तिरा जल्वा तू मेरा दिल है मेरे हम-नशीं
कू-ए-जानाँ में अदा देखिए दीवानों की
ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं
पहुँचो गर इक चाँद पर सौ और आते हैं नज़र
याद इतना है मिरे लब पे फ़ुग़ाँ आई थी
साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं
आरास्ता बज़्म-ए-ऐश हुई अब रिंद पिएँगे खुल खुल के
लोग अंदाज़ा लगाएँगे अमल से मेरे