पहुँचो गर इक चाँद पर सौ और आते हैं नज़र
आसमाँ जाने है कितनी दूर तक फैला हुआ
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(739) Peoples Rate This
मैं तिरा जल्वा तू मेरा दिल है मेरे हम-नशीं
अब कहे जाओ फ़साने मिरी ग़र्क़ाबी के
दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो
निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की
मक़ाम-ए-बर्क़ जिसे आसमाँ भी कहते हैं
याद इतना है मिरे लब पे फ़ुग़ाँ आई थी
रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है
हम तो मंज़िल के तलबगार थे लेकिन मंज़िल
ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम
वुसअ'त तिलिस्म-ख़ाना-ए-आलम की क्या कहूँ
हाल बीमार का पूछो तो शिफ़ा मिलती है
तन को मिट्टी नफ़स को हवा ले गई