ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा
तुम भी अगर मिलोगे तो जी भर न जाएगा
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अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ
कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा
ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है
सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा
सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो
मुद्दआ हम अपना काग़ज़ पर रक़म कर जाएँगे
मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था
हर सदा से बच के वो एहसास-ए-तन्हाई में है
महक किरदार की आती रही है