अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
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वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ
ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा
मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था
कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा
मुद्दआ हम अपना काग़ज़ पर रक़म कर जाएँगे
कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं
ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है
हर सदा से बच के वो एहसास-ए-तन्हाई में है
चेहरे को तेरे देख के ख़ामोश हो गया
सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा
वहम-ओ-गुमाँ में भी कहाँ ये इंक़िलाब था