चेहरे को तेरे देख के ख़ामोश हो गया
ऐसा नहीं सवाल तिरा ला-जवाब था
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मुद्दआ हम अपना काग़ज़ पर रक़म कर जाएँगे
कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा
वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ
ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा
सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा
मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था
सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो
ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है
वहम-ओ-गुमाँ में भी कहाँ ये इंक़िलाब था