बर्ग Poetry (page 7)

किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे

फ़ैसल अजमी

जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद

फ़ाएज़ देहलवी

दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए

एज़ाज़ अहमद आज़र

थीं इक सुकूत से ज़ाहिर मोहब्बतें अपनी

एजाज़ उबैद

अपना अपना रंग

एजाज़ फ़ारूक़ी

दर्पन दिया हूँ दिल का मैं उस दिलरुबा के हाथ

दाऊद औरंगाबादी

कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन

दानियाल तरीर

अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण

मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा

बेदिल हैदरी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

यूँ खुल गया है राज़-ए-शिकस्त-ए-तलब कभी

बशीर ज़ैदी असीर

ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम

बशीर मुंज़िर

जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें

बशीर अहमद बशीर

काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

तहलील

बलराज कोमल

सर-ए-राहगुज़र एक मंज़र

बलराज कोमल

नन्हा शहसवार

बलराज कोमल

ड्रग स्टोर

बलराज कोमल

ग़ुबार-ए-जाँ पस-ए-दीवार-ओ-दर समेटा है

अज़रा वहीद

क़िस्सा-ए-दर्द

अज़ीज़ तमन्नाई

हर एक रंग में यूँ डूब कर निखरते रहे

अज़ीज़ तमन्नाई

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह

अज़ीज़ नबील

ऐ दिल ये है ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-वफ़ा-परस्ती

अज़ीज़ लखनवी

हर इक फ़नकार ने जो कुछ भी लिक्खा ख़ूब-तर लिक्खा

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे

आज़ाद गुरदासपुरी

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