बर्ग Poetry (page 8)
न मंज़िल हूँ न मंज़िल-आश्ना हूँ
अतहर नफ़ीस
दिल की मसर्रतें नई जाँ का मलाल है नया
अतहर नफ़ीस
वतन-आशोब
असरार-उल-हक़ मजाज़
रंग सारे अपने अंदर रफ़्तगाँ के हैं
असलम महमूद
वही ख़्वाबीदा ख़ामोशी वही तारीक तन्हाई
असलम कोलसरी
आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ
असलम कोलसरी
एक नज़्म
असलम अंसारी
जब हमें इज़्न तमाशा होगा
असलम अंसारी
गुबार-ए-एहसास-ए-पेश-ओ-पस की अगर ये बारीक तह हटाएँ
असलम अंसारी
इक बर्ग बर्ग दिन की ख़बर चाहिए मुझे
असलम अंसारी
दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले
असलम अंसारी
बुझी है आतिश-ए-रंग-ए-बहार आहिस्ता आहिस्ता
असलम अंसारी
सीने में दाग़ है तपिश-ए-इंतिज़ार का
आसिफ़ुद्दौला
मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ
अशफ़ाक़ अंजुम
कोई महमिल-नशीं क्यूँ शाद या नाशाद होता है
असग़र गोंडवी
सहरा से चले हैं सू-ए-गुलशन
असर लखनवी
आते हैं बर्ग-ओ-बार दरख़्तों के जिस्म पर
असअ'द बदायुनी
उस अब्र से भी क़बाहत ज़ियादा होती है
असअ'द बदायुनी
कहते हैं लोग शहर तो ये भी ख़ुदा का है
असअ'द बदायुनी
हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए
आरज़ू लखनवी
मैं ख़ाक छानता हूँ आफ़्ताब देखता हूँ
अरशद महमूद नाशाद
बिला-सबब तो कोई बर्ग भी नहीं हिलता
अरशद कमाल
बस कि इक लम्स की उम्मीद पे वारे हुए हैं
अरशद जमाल 'सारिम'
लकीर-ए-संग को अन्क़ा-मिसाल हम ने किया
अरशद अब्दुल हमीद
मेरे प्यारे वतन
अर्श मलसियानी
ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
आरिफ़ अब्दुल मतीन
ए'तिराफ़
अंजुम ख़लीक़
तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया
अंजुम इरफ़ानी
किताब-ए-इश्क़ के जो मो'तबर रिसाले हैं
अंजुम बाराबंकवी
एक नज़्म
अनीस नागी
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