बर्ग Poetry (page 9)

म'अरका जब छिड़ गया तो क्या हुआ हम से सुनो

अनीस अशफ़ाक़

रात मैं इस कश्मकश में एक पल सोया नहीं

अमजद इस्लाम अमजद

शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में

अमीर मीनाई

हर फूल पे उस शख़्स को पत्थर थे चलाने

अम्बर बहराईची

क्यूँ न हों शाद कि हम राहगुज़र में हैं अभी

अम्बर बहराईची

जलते हुए जंगल से गुज़रना था हमें भी

अम्बर बहराईची

मिट्टी का दिया

अल्ताफ़ हुसैन हाली

हुब्ब-ए-वतन

अल्ताफ़ हुसैन हाली

ज़ौक़ ओ शौक़

अल्लामा इक़बाल

तुलू-ए-इस्लाम

अल्लामा इक़बाल

तस्वीर-ए-दर्द

अल्लामा इक़बाल

शिकवा

अल्लामा इक़बाल

साक़ी-नामा

अल्लामा इक़बाल

मार्च 1907

अल्लामा इक़बाल

हिमाला

अल्लामा इक़बाल

या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन

अल्लामा इक़बाल

मेरा सफ़र

अली सरदार जाफ़री

इत्र-ए-फ़िरदौस-ए-जवाँ में ये बसाए हुए होंट

अली सरदार जाफ़री

नींद आ गई थी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ से गुज़र के

अली जव्वाद ज़ैदी

चमन में वो फ़रामोशी का मौसम था मैं ख़ुद को भी

अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री

निगाह-ए-लुत्फ़ क्या कम हो गई है

अलीम अख़्तर

हाथों से मेरे छीन कर दिल का मआल ले गई

अलीम अफ़सर

ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए'तिबार फिर

अकरम नक़्क़ाश

कहाँ से लाएँगे आँसू अज़ा-दारी के मौसम में

अख़तर शाहजहाँपुरी

शायान-ए-ज़िंदगी न थे हम मो'तबर न थे

अख़्तर होशियारपुरी

फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया

अख़्तर अंसारी

ये सारी धूल मिरी है ये सब ग़ुबार मिरा

अकबर मासूम

जहाँ न दिल को सुकून है न है क़रार मुझे

आजिज़ मातवी

तिलिस्म-ज़ार-ए-शब-ए-माह में गुज़र जाए

ऐतबार साजिद

शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया

अहमद शनास

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