बर्ग Poetry (page 3)
शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
पत्थर की भूरी ओट में लाला खिला था कल
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
हर नक़्श अधूरा है
शकील जाज़िब
ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ
शहज़ाद अहमद
बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
शहज़ाद अहमद
संग-ज़नों के वास्ते फिर नए रास्तों में है
शाहिदा तबस्सुम
कूज़ा-ए-दर्द में ख़ुशियों के समुंदर रख दे
शाहिद कमाल
मौसम की विरासत
शाहीन ग़ाज़ीपुरी
मेरी चाहत पे न इल्ज़ाम लगाओ लोगो
शाहीन ग़ाज़ीपुरी
ज़माना मेरी तबाही पे जो उदास हुआ
शाहीन बद्र
ग़ुंचा ग़ुंचा मौसम-ए-रंग-ए-अदा में क़ैद था
शाहीन बद्र
पामाल-ए-राह-ए-इश्क़ हैं ख़िल्क़त की खा ठोकर भी हम
शाह नसीर
कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं
शाह नसीर
दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर
शाह नसीर
देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया
शाह नसीर
बदन-दरीदा-ओ-बे-बर्ग-ओ-बार होना भी
शाह हुसैन नहरी
तस्वीर मिरी है अक्स तिरा तू और नहीं मैं और नहीं
शाद लखनवी
ग़ैरों में हिना वो मल रहा है
शाद लखनवी
देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा
शाद लखनवी
यही सुलूक मुनासिब है ख़ुश-गुमानों से
शबनम रूमानी
दोस्ती का सितारा
शब्बीर शाहिद
नज़र के भेद सब अहल-ए-नज़र समझते हैं
सऊद उस्मानी
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
सरवत हुसैन
क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना
सरवत हुसैन
मैं फ़र्त-ए-मसर्रत से डर है कि न मर जाऊँ
सरदार सोज़
यहीं कहीं पे कभी शोला-कार मैं भी था
साक़ी फ़ारुक़ी
रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा
सलीम शहज़ाद
रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है
सलीम शाहिद
फ़र्श-ए-ज़मीं पे बर्ग-ए-ख़िज़ानी का रंग है
सलीम शाहिद
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