बर्ग Poetry (page 2)

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

एक टहनी से बर्ग टूटा है

तौक़ीर अब्बास

कोई है बाम पर देखा तो जाए

तारिक़ मतीन

चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था

तहसीन फ़िराक़ी

शहर को चोट पे रखती है गजर में कोई चीज़

तफ़ज़ील अहमद

उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा

तअशशुक़ लखनवी

ज़मीन-ए-इश्क़ पे ऐ अब्र-ए-ए'तिबार बरस

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

वजूद को जिगर-ए-मो'तबर बनाते हैं

सय्यद अमीन अशरफ़

गर्दिश-ए-आब-ओ-हवा जानती है

सय्यद अमीन अशरफ़

रात दिन शाम-ओ-सहर सब एक रंग

सुल्तान शाहिद

जो कश्मकश थी तिरा इंतिज़ार करते हुए

सुलतान निज़ामी

झिजक रहा हूँ उसे आश्कार करते हुए

सुलतान निज़ामी

साँस उखड़ी हुई सूखे हुए लब कुछ भी नहीं

सुल्तान अख़्तर

पस-ए-ग़ुबार-ए-तलब ख़ौफ़-ए-जुस्तुजू है बहुत

सुल्तान अख़्तर

इस घनी शब का सवेरा नहीं आने वाला

सुलेमान ख़ुमार

सफ़र में अब भी आदतन सराब देखता हूँ मैं

सुहैल अहमद ज़ैदी

वही सितारा जो बुझ गया हम-सफ़र था मेरा

सिराज मुनीर

वो ज़ुल्फ़ है तो हर्फ़-ए-ततार-ओ-ख़ुतन ग़लत

सिराज औरंगाबादी

सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया

सिराज औरंगाबादी

कौन कहता है जफ़ा करते हो तुम

सिराज औरंगाबादी

हवस की आँख सीं वो चेहरा-ए-रौशन न देखोगे

सिराज औरंगाबादी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

नख़्ल-ए-दुआ कभी जब दिल की ज़मीं से निकले

शोएब निज़ाम

नुमूद-ए-रंग से बेगाना-वार आई है

शिव दयाल सहाब

हवस का दाम फैलाया हुआ है

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल हुआ

ज़ौक़

क्या क्या न तेरे सदमे से बाद-ए-ख़िज़ाँ गिरा

शैख़ अली बख़्श बीमार

क्या करूँ रंज गवारा न ख़ुशी रास मुझे

शाज़ तमकनत

शहर में इक क़त्ल की अफ़्वाह रौशन क्या हुई

शरीक़ अदील

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