ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
रिश्ता-ए-तस्बीह और सर-रिश्ता-ए-ज़ुन्नार बंद
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न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल
साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह
ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
मा'रके में इश्क़ के सर से गुज़रने से न डर
ये जूँ जूँ वा'दे के दिन रात पड़ते जाते हैं
राग अपना गा हमारा ज़िक्र मत कर ऐ रक़ीब
मैं हूँ और साक़ी हो और हों रास ओ चुप ये वो बहम