गिरते हैं दुख से तेरी जुदाई के वर्ना ख़ैर
चँगे भले हैं कुछ नहीं आज़ार है हमें
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(479) Peoples Rate This
उस के कूचे ही में आ निकलूँ हूँ जाऊँ जिस तरफ़
उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई
दरिया-ए-मोहब्बत से 'मुहिब' ले ही के छोड़ी
ये जूँ जूँ वा'दे के दिन रात पड़ते जाते हैं
मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
लाला-रू तुम ग़ैर के पाले पड़े
दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
जो अज़-ख़ुद-रफ़्ता है गुमराह है वो रहनुमा मेरा
हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर
शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से