दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
गुज़रता है तिरे कूचे से पहले ही क़दम सर से
Habib Jalib
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अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़
राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए
मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब
साक़ी हमें क़सम है तिरी चश्म-ए-मस्त की
मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास
ऐ बंदा-परवर इतना लाज़िम है क्या तकल्लुफ़
ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई
राग अपना गा हमारा ज़िक्र मत कर ऐ रक़ीब
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ