साक़ी हमें क़सम है तिरी चश्म-ए-मस्त की
तुझ बिन जो ख़्वाब में भी पिएँ मय हराम हो
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हो गधे पर सवार जा काबा
वो जो लैला है मिरे दिल में सुने उस का जो शोर
दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ
दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब
पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है
न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल
दैर में का'बे में मयख़ाने में और मस्जिद में
शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है
ब-मअ'नी कुफ़्र से इस्लाम कब ख़ाली है ऐ ज़ाहिद
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
हमारी चाह साहब जानते हैं