न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल
सिवाए इस के जो जी चाहे सो किया कीजे
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मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब
मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
का'बे में वही ख़ुद है वही दैर में है आप
मिल उस परी से क्या क्या हुआ दिल
अरे ओ ख़ाना-आबाद इतनी ख़ूँ-रेज़ी ये क़त्ताली
हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी
फ़स्ल ख़िज़ाँ में बाग़-ए-मज़ाहिब की की जो सैर
दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ
यूँ घर से मोहब्बत के क्या भाग चले जाना
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
शैख़ कहते हैं मुझे दैर न जा काबा चल