का'बे में वही ख़ुद है वही दैर में है आप
हिन्दू कहो या उस को मुसलमान वही है
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ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच
मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास
हमारी चाह साहब जानते हैं
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
रहीम ओ राम की सुमरन है शैख़ ओ हिन्दू को
फूलों की सेज दोस्त की ख़ातिर 'मुहिब' बिछाओ
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ
दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ
वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है
अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़