फूलों की सेज दोस्त की ख़ातिर 'मुहिब' बिछाओ
काँटे रखो बबूल के आ'दाओं के तले
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(634) Peoples Rate This
यूँ घर से मोहब्बत के क्या भाग चले जाना
रात आख़िर है यहाँ आया नज़र आसार-ए-सुब्ह
कुछ न देखा किसी मकान में हम
जो अज़-ख़ुद-रफ़्ता है गुमराह है वो रहनुमा मेरा
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
हर घड़ी वहम में गुज़रे हैं नए अख़बारात
ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
इश्क़ जब दख़्ल करे है दिल-ए-इंसाँ में 'मुहिब'
हमारी चाह साहब जानते हैं
मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब