इश्क़ जब दख़्ल करे है दिल-ए-इंसाँ में 'मुहिब'
वाहिमे सब बशरिय्यत के करे है इख़राज
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(420) Peoples Rate This
हर घड़ी वहम में गुज़रे हैं नए अख़बारात
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
हम हवा-ए-वस्ल में याँ तक फिरे
न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल
राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
ख़त का ये जवाब आया कि क़ासिद गया जी से
यूँ घर से मोहब्बत के क्या भाग चले जाना
काबा ओ दैर में जब वो बुत-ए-काफ़िर न मिला
इस ख़ानुमाँ-ख़राब को भी दे मियाँ बता
साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी