इस ख़ानुमाँ-ख़राब को भी दे मियाँ बता
हैं कौन कौन से तिरे रहने के घर के वक़्त
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(461) Peoples Rate This
चराग़-ए-का'बा-ओ-दैर एक सा है चश्म-ए-हक़-बीं में
काबा ओ दैर में जब वो बुत-ए-काफ़िर न मिला
मैं हूँ और साक़ी हो और हों रास ओ चुप ये वो बहम
ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच
तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ज़ेर-ए-आसमाँ की समेट
जिसे गर्म-इख़्तिलाती की लगा दे दिल में तू आतिश
साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट
रहीम ओ राम की सुमरन है शैख़ ओ हिन्दू को
जौन से रस्ते वो हो निकले उधर पहरों तलक
रक़ीब जम के ये बैठा कि हम उठे नाचार
गिरते हैं दुख से तेरी जुदाई के वर्ना ख़ैर
शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से