दैर में का'बे में मयख़ाने में और मस्जिद में
जल्वा-गर सब में मिरा यार है अल्लाह अल्लाह
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(444) Peoples Rate This
ये जूँ जूँ वा'दे के दिन रात पड़ते जाते हैं
इस ख़ानुमाँ-ख़राब को भी दे मियाँ बता
शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है
बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस
ये दाढ़ी मोहतसिब ने दुख़्त-ए-रज़ के फाड़ खाने को
ब-मअ'नी कुफ़्र से इस्लाम कब ख़ाली है ऐ ज़ाहिद
अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी
मा'रके में इश्क़ के सर से गुज़रने से न डर
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ
सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए
मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास