अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी
लहलही सी नज़र आती है हरी रहती है
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(566) Peoples Rate This
मा'रके में इश्क़ के सर से गुज़रने से न डर
उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई
दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब
दर्स-ए-इल्म-ए-इश्क़ से वाक़िफ़ नहीं मुतलक़ फ़क़ीह
ऐ बंदा-परवर इतना लाज़िम है क्या तकल्लुफ़
ब-मअ'नी कुफ़्र से इस्लाम कब ख़ाली है ऐ ज़ाहिद
तुम जानते हो किस लिए वो मुझ से गया लड़
मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का
चराग़-ए-का'बा-ओ-दैर एक सा है चश्म-ए-हक़-बीं में
अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़
जो अपने जीते-जी को कुएँ में डुबोइए