राग अपना गा हमारा ज़िक्र मत कर ऐ रक़ीब
जब सतावेगा हमें तब लेंगे हम इक धोल थाप
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रक़ीब जम के ये बैठा कि हम उठे नाचार
जौन से रस्ते वो हो निकले उधर पहरों तलक
हम हवा-ए-वस्ल में याँ तक फिरे
शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है
ऐ बंदा-परवर इतना लाज़िम है क्या तकल्लुफ़
साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट
जिसे गर्म-इख़्तिलाती की लगा दे दिल में तू आतिश
हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग
अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो