हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग
नेक सुल्ह-ए-कुल है बद है बा-जवान-ओ-पीर-ए-जंग
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(464) Peoples Rate This
तुम गाओ अपने राग को उस पास वाइ'ज़ो
अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़
दीं से पैदा कुफ़्र है और नूर शक्ल-ए-नार है
रहीम ओ राम की सुमरन है शैख़ ओ हिन्दू को
'मुहिब' तुम बुत-परस्ती को न छोड़ो
उस के कूचे ही में आ निकलूँ हूँ जाऊँ जिस तरफ़
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
वो जो लैला है मिरे दिल में सुने उस का जो शोर
मिरे दिल में हिज्र के बाब हैं तुझे अब तलक वही नाज़ है
किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
सुख़न जिन के कि सूरत जूँ गुहर है बहर-ए-मअ'नी में