दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह
बंद होता ही नहीं रस्ता दिलों की राह का
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काबा जाने की हवस शैख़ हमें भी है वले
तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है
हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग
दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
हो गधे पर सवार जा काबा
रक़ीब जम के ये बैठा कि हम उठे नाचार