दीवानगी के सिलसिला का होए जो मुरीद
उस गेसू-ए-दराज़ सिवा पीर ही नहीं
Habib Jalib
Gulzar
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Allama Iqbal
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Ahmad Faraz
Rahat Indori
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Jaun Eliya
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मा'रके में इश्क़ के सर से गुज़रने से न डर
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर
फ़स्ल ख़िज़ाँ में बाग़-ए-मज़ाहिब की की जो सैर
राग अपना गा हमारा ज़िक्र मत कर ऐ रक़ीब
ऐ दिल तुझे करनी है अगर इश्क़ से बैअ'त
जो अपने जीते-जी को कुएँ में डुबोइए
इश्क़ जब दख़्ल करे है दिल-ए-इंसाँ में 'मुहिब'
शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है
नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त
किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर