ऐ दिल तुझे करनी है अगर इश्क़ से बैअ'त
ज़िन्हार कभू छोड़ियो मत सिलसिला-ए-दर्द
Anwar Masood
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बे-इश्क़ जितनी ख़ल्क़ है इंसाँ की शक्ल में
शैख़ कहते हैं मुझे दैर न जा काबा चल
हमारी चाह साहब जानते हैं
हम हवा-ए-वस्ल में याँ तक फिरे
पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ
दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह
इन दो के सिवा कोई फ़लक से न हुआ पार
अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी
दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
रहीम ओ राम की सुमरन है शैख़ ओ हिन्दू को