काबा जाने की हवस शैख़ हमें भी है वले
कूचा-ए-यार क़यामत है हवा-दार अज़ीज़
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हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
चराग़-ए-का'बा-ओ-दैर एक सा है चश्म-ए-हक़-बीं में
ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
मय-कदे में मस्त हैं और शोर उन का हाव-हू
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का
तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़
साक़ी हमें क़सम है तिरी चश्म-ए-मस्त की
हर घड़ी वहम में गुज़रे हैं नए अख़बारात