काश हम नाकाम भी काम आएँ तेरे इश्क़ में
मुतलक़न नाकारा हैं दुनिया-ओ-दीं के काम से
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ज़ाहिदा तू सोहबत-ए-रिंदाँ में आया है तो सुन
इश्क़ जब दख़्ल करे है दिल-ए-इंसाँ में 'मुहिब'
ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़
दरिया-ए-मोहब्बत से 'मुहिब' ले ही के छोड़ी
का'बे में वही ख़ुद है वही दैर में है आप
तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
जलता है कि ख़ुर्शीद की इक रोटी हो तय्यार
तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ज़ेर-ए-आसमाँ की समेट
ऐ बंदा-परवर इतना लाज़िम है क्या तकल्लुफ़